माधव बैठे कुंड के तीर
सोच सोचकर सुन्दरी बाट देखें श्री हरि
बेचैन दिल न रहे स्थिर
कोमल पंखुड़ियों से शेज बिछाये जतन से
नये किशलय वहां सजाये,
चित्त हुआ आकुल मोहन हुये व्याकुल
आंसूओं को न रोक पाये ।
तब उस क्षण मदन द्विगुण जलाये तन’
छाया बुखार श्याम के अंग
गोविन्द दास कहे सुबल के हाथधरे
बहे झरझर नयन तरंग ।
6 thoughts on “इम्तहान हो गयी इन्तज़ार की”