कान्हा को विदा करते हुये

मैया अंगपे हाथ फेरे और मुंह को पोंछे,

थन-खीर और नयन-नीर से धरती  को सींचे ।

 

नन्द राय आकर कानू को उठाये गोदी में,

मुंह को चूमकर भिगोया आंसूंवन  में ।

 

सर को चूमकर नन्द राय गये ठहर,

चित्र या पुतला जैसे स्तम्भित होकर ।

 

थोड़ा धीरज धरकर फिर से मुंह पोंछे,

शरीर थरथराये, अश्रु से ज़मीन को सींचे ।

 

ईश्वर का नाम लेकर उंगलियों में मन्त्र पढ़े,

नृसिंह-कवच और बीज-मन्त्र बांध दिया गले ।

 

पृथ्वी आकाश और दस दिकों की राह में

नृसिंह भगवान हमेशा तुम्हारी रक्षा करें ।

 

फिर तुम लौटना घर, होगा सर्वत्र मंगल

गौर दास कहे, नन्द राजा हुए विकल ।