My dear friend Sadanandi Mataji writes –
Dear Madhumati,
Radhe Radhe !
One inspiration from my Guru Maharaj:
The Sacrifice of Nama Yajna – Singing the Holy Name
A nama-yajna is exclusively for the pleasure of Krsna and doing it, … Read more >
My dear friend Sadanandi Mataji writes –
Dear Madhumati,
Radhe Radhe !
One inspiration from my Guru Maharaj:
The Sacrifice of Nama Yajna – Singing the Holy Name
A nama-yajna is exclusively for the pleasure of Krsna and doing it, … Read more >
सोने का वर्ण हैं गौरचन्दा,
जगत की आंखों का फन्दा ।
उसपे कितने भाव-प्रकाश,
कौन समझे ये रस-विलास ?
कैसे कहूं पहुं[1] के चरित ?
उनकी तो आंसू-भरी पिरीत ।
पुलकित हैं प्रेम-अंकुर,
हर अंग सुख से भरपूर ।… Read more >
सखाओं के साथ आये नन्द-दुलाल,
गोधुलि धुसर श्याम कलेवर
जानू-लम्बित वनमाल ।
बार बार शृंग-वेनू रव सुनकर दौड़ आये ब्रजवासी,
आरती उतारें वधूगण, देखें मधुर मुस्कान-हंसी ।
पीताम्बर धर मुख निन्दे विधूवर
नव-मंजरी अवतंस
अंगद-केयूर चुड़ा मयूर,
बजाये मोहन-वंस[2]… Read more >
राधा सरसी होकर हरषी
भवन में बैठीं बाला,
सुरस व्यंजन किया रन्धन,
भरईं[1] स्वर्ण-थाला ।
ढंककर वसन से रखकर जतन से
करने गयी स्नान,
दासियों के संग हुआ रस-रंग
करते हुये स्नान ।
अन्दर जाकर बहुत जतन कर
पहिना … Read more >
जय शची-नन्दन भुवन आनन्द !
नवद्वीप में उछले नव-रस-कन्द !
गो-क्षूर धूल देखकर, सुन वेणू-निसान,
“अपरूप श्याम मधुर-मधुर-अधर मृदु मुरली-गान”
ऐसा कहकर भाव-विवश गौर, कहे गदगद बात,
“श्याम सुनागर वन से आवत सब सहचरों के साथ ।
मेरे तन मन … Read more >
राधा-माधव उठे शयन से अलस-अवश शरीर,
वनेश्श्वरी उस क्षण करके जतन लायी शारी-शुक कीर[1] ।
शुक-शारी को देखकर दोनों को हुआ आनन्द,
राई के इशारे पे वृन्दा पढ़ावे गीत-पद्य सुछन्द[2] ।
कानू के रूप लक्षण शुक करे वर्णन,… Read more >
रतन थाल भरई चीनी केले मलाई
लायीं रसवती राई,
शीतल कुंज तल खुशबू सुपरिमल
बैठे नागर कन्हाई ।
सब सखियन मिल रस गीत गाये,
हंस हंसकर कुण्ड तट आये ।
जल में प्रवेश किये सखीगण,
जल में समर[1] करत दोनों जन ।
बिखरे कुन्तल[2] अंग में लगी आग,
जब युद्ध हुआ गहरा, तो नागर गये भाग … Read more >
गोराचांद को जलकेलि याद आया,
पार्षदों के साथ खुद जल में उतर आया ।
एक दूसरे के अंग पर जल फेंक कर मारे,
गौरांग गदाधर को जल से मारे ।
जल-क्रीड़ा करे गोरा हरषित मन,
कोलाहल कलरव करे सब जन … Read more >
रत्न-मन्दिर में नागर-नागरी बैठे सखियन माझ[1],
नागर का इशारा वृन्दा देवी ने समझ कर किया काज ।
तब सुवासित उत्कृष्ट मधु लाकर दिये,
इस मधु के आगे सुधा भी लजाये ।
खुद पान करे कान्हा औरों को भी