श्री गौरचन्द्र के भोजन और विश्राम –

 

सोने का वर्ण हैं गौरचन्दा,

जगत की आंखों का फन्दा ।

 

उसपे कितने भाव-प्रकाश,

कौन समझे ये रस-विलास ?

 

कैसे कहूं पहुं[1] के चरित ?

उनकी तो आंसू-भरी पिरीत  ।

 

पुलकित हैं प्रेम-अंकुर,

हर अंग सुख से भरपूर ।Read more >

गोधूलि धुसर श्याम कलेवर

सखाओं के साथ आये नन्द-दुलाल,

गोधुलि धुसर                श्याम कलेवर

जानू-लम्बित वनमाल ।

 

बार बार शृंग-वेनू रव सुनकर दौड़ आये ब्रजवासी,

आरती उतारें वधूगण, देखें मधुर मुस्कान-हंसी ।

 

पीताम्बर धर                मुख निन्दे विधूवर

नव-मंजरी अवतंस

अंगद-केयूर                  चुड़ा मयूर,

बजाये मोहन-वंस[2]Read more >

उत्तर-गोष्ठ की लीला –

राधा सरसी         होकर हरषी

                भवन में बैठीं बाला,

सुरस व्यंजन         किया रन्धन,

                भरईं[1] स्वर्ण-थाला ।

 

ढंककर वसन से             रखकर जतन से

                करने गयी स्नान,

दासियों के संग              हुआ रस-रंग

                करते हुये स्नान ।

 

अन्दर जाकर        बहुत जतन कर

                पहिना Read more >

उत्तर गोष्ठ की आवेश में महाप्रभु

 

जय शची-नन्दन भुवन आनन्द !

नवद्वीप में उछले नव-रस-कन्द !

 

गो-क्षूर धूल देखकर, सुन वेणू-निसान,

“अपरूप श्याम मधुर-मधुर-अधर मृदु मुरली-गान”

 

ऐसा कहकर भाव-विवश गौर, कहे गदगद बात,

“श्याम सुनागर वन से आवत सब सहचरों के साथ ।

 

मेरे तन मन Read more >

श्री श्री राधा-कृष्ण – शुक-शारी पाठ और पांसे का खेल –

राधा-माधव उठे शयन से अलस-अवश शरीर,

वनेश्श्वरी उस क्षण करके जतन लायी शारी-शुक कीर[1]

 

शुक-शारी को देखकर दोनों को हुआ आनन्द,

राई के इशारे पे वृन्दा पढ़ावे गीत-पद्य सुछन्द[2]

 

कानू के रूप लक्षण         शुक करे वर्णन,Read more >

श्री श्री राधा माधव के भोजन-अवशेष

रतन थाल भरई             चीनी केले मलाई

                लायीं  रसवती राई,

शीतल कुंज तल             खुशबू सुपरिमल

                बैठे नागर कन्हाई ।

श्री श्री राधा-कृष्ण की जलकेलि और भोजन

 

सब सखियन मिल रस गीत गाये,

हंस हंसकर कुण्ड तट आये ।

 

जल में प्रवेश किये सखीगण,

जल में समर[1] करत दोनों जन ।

 

बिखरे कुन्तल[2] अंग में लगी आग,

जब युद्ध हुआ गहरा, तो नागर गये भाग Read more >

गौरचन्द्र का जल-विहार

 

गोराचांद को जलकेलि याद आया,

पार्षदों के साथ खुद जल में उतर आया ।

 

एक दूसरे के अंग पर जल फेंक कर मारे,

गौरांग गदाधर को जल से मारे ।

 

जल-क्रीड़ा करे गोरा हरषित मन,

कोलाहल कलरव करे सब जन Read more >

श्री श्री राधा-कृष्ण का मधुपान तथा विलास

 

रत्न-मन्दिर में नागर-नागरी बैठे सखियन माझ[1],

नागर का इशारा वृन्दा देवी ने समझ कर किया काज ।

 

तब सुवासित उत्कृष्ट मधु लाकर दिये,

इस मधु के आगे सुधा भी लजाये ।

 

खुद पान करे कान्हा औरों को भी

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