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ठाकुर लोचन दास ने “श्री चैतन्य मंगल” में श्री गौर-गोविन्द की नित्य-लीला का सम्भोग लीलारंग इस तरह से वर्णन किया है –
शयन मन्दिर में सो रहे हैं नागर,
विष्णूप्रिया गयीं ताम्बूल थाली लेकर ।
“आओ आओ” प्रभु ने कहा हंसकर,
बहुत प्यार करे गोद में उठाकर ।
विष्णुप्रिया ने प्रभु-अंग पे चन्दन लगाया,
अगुरु कस्तूरी गन्ध से तिलक रचाया ।
दिव्य मालती-माला से सजाया गौर-अंग,
श्रीमुख में ताम्बूल दिया करके नाना रंग[1] ।
फिर महाप्रभु, वे तो रसिक-शिरोमणि,
विष्णुप्रिया को सजाये नागर चुड़ामणि ।
दीर्घ केश, काम की चंवर जैसे उज्ज्वल,
जूड़ा बांधकर दिया मालती के माल ।
चन्द्रकला ने जैसे मेघ को बांध लिया है,
उगल रही या निगल, समझ न सकूं मैं ।
सुन्दर ललाट पे रचा सिन्दूर बिन्दु,
दिवाकर की गोद में खेल रही इन्दु ।
रचा चन्दन बिन्दु, सिन्दूर के चारों ओर,
सूरज देखने को जैसे चांद आये हैं दौड़कर ।
खंजन नयन मे दिया उज्ज्वल अंजन,
भौंहों को बनाया काम का कमान ।
अगुरु कस्तूरी किया कुच पर लेपन,
उसपर दिया दिव्य कंचुकी-आवरण ।
फिर अंग पे सजाया विविध अलंकार,
ताम्बूल हंसी से नागर खुश हुये अपार ।
त्रैलोक्य-मोहिनी रूप निहार रहे वदन,
खुशामदी करके ले अधरों का चुम्बन ।
क्षण में भुजलता[2] से किया आलिंगन ऐसे,
गजेन्द्र ने कमलिनी को गोद में उठाया जैसे ।
विविध रस बिखेरे विनोद-नागर,
औरों की क्या बात, काम का भी अगोचर[3] ।
सुमेरु की गोद में बिजली का प्रकाश[4],
मदन मोहित देखकर यह रति-विलास ।
हृदय पर धरे, न छूने दें शय्या से,
करवट न बदले, दोनों लिपटे एक दूसरे से ।
दिल पे दिल, मुख पे मुख, रजनी बिताये,
रस-क्लान्ति में चूर, दोनों सुख-निद्रा जाये ।
[1] हंसी मज़ाक
[2] प्रियाजी ने प्रभु को लता जैसी भुजाओं से आलिंगन किया, तो प्रभु ने उन्हें उठा लिया । ऐसा लगा मानो कोई शक्तिशाली हाथी ने कमल की कलि को गोद में उठा लिया हो ।
[3] कामदेव भी नहीं जानते हैं, प्रभु ऐसी प्रेम-कला का विस्तार करते हैं ।
[4] सुमेरु पर्वत सोने से बना है । हमारे प्रभु भी स्वर्ण वर्ण के हैं । इसलिये जब वे प्रियाजी के साथ केलि कर रहे हों, तब ऐसा लगता है, जैसे सुमेरु पर्वत से बिजली टकड़ा रही हो ।