आज वन में आनन्द रसिया
खेल-मस्ती में मस्त होकर राखाल झूमे विभोर होकर
और दूर चलीं गयीं गैया ।
धेनू न देखा जब रुक गया खेल तब
श्रीदाम सुदाम ढूंढे धेनू ।
कान्हा ने कहा, “देखो, खेल को न रोको,
गोधन लाऊंगा बजाकर वेणू ।”
अधर पे मुरली धरे नाम लेकर पुकारे
प्यार-भरा ऊंचा स्वर ।
सुनकर वेणू का रव दौड़ आये धेनू-वत्स सब
पीठ पर पूंछ डालकर ।
पंगत में आयीं गौ सब करे “हम्बा हम्बा’’ रव
लायीं बछड़ों को भी संग ।
दूध बहे थन से नाचे प्रेम-मस्ती से,
चाटें स्नेह से श्याम अंग ।
सखागण यह देखकर “वाह ! वाह !” बोलकर
कानू को किया आलिंगन,
वैष्णव दास कहे, “सुन कान्हा की मुरली-धुन
पशू-पक्षी को मिला चेतन ।”