प्रातः लीला – राधारानी का मां यशोदा से मिलन –

 

राई को देखकर              जोश में आकर

                मैया ने उठाया गोदी में,

चिबुक पकड़कर             चुम्बन देकर

                भीगीं आंसूवन में ।

प्रातः लीला – श्री श्री राधा-श्याम का नन्दालय के बाहर मिलन –

राह में गुज़रते वक़्त नैन हुये चार,

दिल को मिला चैन, आंखों में ख़ुमार ।

प्रातः लीला – गौरचन्द्र के रसालस, राधारानी के रसोद्गार

गौरचन्द्र – रसालस –

सबेरा होते ही,      शेज[1] त्याजहिं[2],

उठे गौर-विधु[3],

विगलित वेश,       अस्त-व्यस्त केश,

जैसे कोई नयी कुल-वधू[4]

देखें भकतगण       मेरे प्रियजन,

इसलिये उठ बैठे,

डाल रहे मधु,        कहे मृदु-मृदु,

रजनी Read more >

प्रातः लीला – ३

इधर वह किंकरी, राधा का उत्तरी[1] पीतवास खींच लिया,

झट से नीलाम्बर राधा के वक्ष पर तेज़ी से डाल दिया ।

 

विशाखा-वचन सुन मुखरा उस क्षण हुई लज्जित अति,

 मुझे बहुत काम है, फालतु वक्त किसे है ? कहकर Read more >