रतन थाल भरई चीनी केले मलाई
लायीं रसवती राई,
शीतल कुंज तल खुशबू सुपरिमल
बैठे नागर कन्हाई ।
रतन थाल भरई चीनी केले मलाई
लायीं रसवती राई,
शीतल कुंज तल खुशबू सुपरिमल
बैठे नागर कन्हाई ।
सब सखियन मिल रस गीत गाये,
हंस हंसकर कुण्ड तट आये ।
जल में प्रवेश किये सखीगण,
जल में समर[1] करत दोनों जन ।
बिखरे कुन्तल[2] अंग में लगी आग,
जब युद्ध हुआ गहरा, तो नागर गये भाग … Read more >
गोराचांद को जलकेलि याद आया,
पार्षदों के साथ खुद जल में उतर आया ।
एक दूसरे के अंग पर जल फेंक कर मारे,
गौरांग गदाधर को जल से मारे ।
जल-क्रीड़ा करे गोरा हरषित मन,
कोलाहल कलरव करे सब जन … Read more >
रत्न-मन्दिर में नागर-नागरी बैठे सखियन माझ[1],
नागर का इशारा वृन्दा देवी ने समझ कर किया काज ।
तब सुवासित उत्कृष्ट मधु लाकर दिये,
इस मधु के आगे सुधा भी लजाये ।
खुद पान करे कान्हा औरों को भी
सहचर संग गौरकिशोर,
मधुपान-भाव-रस में हुये विभोर ।
क्या कहना चाहे और क्या बताये,
यह तो कोई समझ ही ना पाये ।
प्रभु के रूप में कुछ बदलाव आये,
देखकर भकतगण विभोर हो जायें ।
डोल रहे अलसित अरुण नयन,… Read more >
भ्रमत गहन वन में जुगल-किशोर,
संग सखीगण आनन्द-विभोर ।
एक सखी कहे, “देखो देखो सखियन,
कैसे एक दूजे को देखें, अपलक अंखियन !’’
पेड़ हैं पुलकित, खुशबू[1] पाकर भ्रमर-गण
उनकी ओर[2] भागे त्यज फूलों का वन ।
दोनों … Read more >
झूले से उतरकर देखा गोपियों ने
कि अब हो गयी है बेला
फूल तोड़्ने को चले जल्दी
सभी आभीर-बाला ।
कांचन कान्ति कोमल कलेवर, विहरे सुरधूनी कूल,
तरुण तरुण तरु देखकर तोड़े कुन्द करबी के फूल।
सभी समवय सखा-संग सरस रभस रंग में भोर,
गजवर-गमन को गंजये गति मन्थर, प्रेम-रस विभोर
गदाधर को ले गोदी पर, अपरूप गौरांग के रंग,… Read more >
राधा-कुण्ड के पास जब वर्षा करे हास
और बकुल कदम्ब झूमे,
हर दो शाख पर हिन्दोला रतन-डोरी की माला
बीच बीच में मुक्ता चूमे ।
पंखुड़ियों को चूरन कर पतले वस्त्र में भरकर,
सखियों ने बनाया तकिया,
पट्टे के ऊपर … Read more >
सुरधूनी तीर पे आज गौरकिशोर,
झूलन–रस–रंग में हो गये विभोर ।