कन्हैया जी सखाओं के साथ भोजन कर रहे हैं –

 

शीतल जल से           निर्मल सुगंध से

        भरकर सोने के गिलास,

बड़े सावधानी से            और प्यार से

        रखा हर आसन के पास ।

राधारानी के बनाये हुये पकवान –

 

 

भोर हुआ जैसे               दास-दासियों से

        मैया कराये काम-काज,

जिसका जो काम,           सो करे अनुपाम,

होकर तत्पर आज ।

प्रातः लीला – राधारानी का मां यशोदा से मिलन –

 

राई को देखकर              जोश में आकर

                मैया ने उठाया गोदी में,

चिबुक पकड़कर             चुम्बन देकर

                भीगीं आंसूवन में ।

प्रातः लीला – श्री श्री राधा-श्याम का नन्दालय के बाहर मिलन –

राह में गुज़रते वक़्त नैन हुये चार,

दिल को मिला चैन, आंखों में ख़ुमार ।

प्रातः लीला – कुन्दलता ने जटीला से कहा –

ऐसी ही  हैं ब्रजेश्वरी               उन्हें मालूम नहीं चातूरी

वे ठहरीं परम उदार,

आप कड़वी बातें कहेंगी            तो वे अभी भूल जायेंगी

और करेंगी आपसे प्यार ।

प्रातः लीला – श्री राधा नन्दालय में जाकर रसोइ, भोजन आदि करती है –

करके सोलह सिंगार                हुई खुश अपार

देख कर अपना रुख़,

कृष्ण अधरामृत             पाकर हर्षित

हुआ परम-सुख ।

प्रातः लीला – श्री गौरचन्द्र भावावेश में नन्दालय जा रहे हैं –

एकान्त में बैठे गोराराय,

पांव से सर तक             पुलक से पूरित

प्रेम-धारा बह जाय ।