शीतल जल से निर्मल सुगंध से
भरकर सोने के गिलास,
बड़े सावधानी से और प्यार से
रखा हर आसन के पास ।
शीतल जल से निर्मल सुगंध से
भरकर सोने के गिलास,
बड़े सावधानी से और प्यार से
रखा हर आसन के पास ।
भोर हुआ जैसे दास-दासियों से
मैया कराये काम-काज,
जिसका जो काम, सो करे अनुपाम,
होकर तत्पर आज ।
राई को देखकर जोश में आकर
मैया ने उठाया गोदी में,
चिबुक पकड़कर चुम्बन देकर
भीगीं आंसूवन में ।
राह में गुज़रते वक़्त नैन हुये चार,
दिल को मिला चैन, आंखों में ख़ुमार ।
सुन्दरी राधा सखी संग जाई,
नन्दालय के पथ पर लेकर बधाई ।
ऐसी ही हैं ब्रजेश्वरी उन्हें मालूम नहीं चातूरी
वे ठहरीं परम उदार,
आप कड़वी बातें कहेंगी तो वे अभी भूल जायेंगी
और करेंगी आपसे प्यार ।
करके सोलह सिंगार हुई खुश अपार
देख कर अपना रुख़,
कृष्ण अधरामृत पाकर हर्षित
हुआ परम-सुख ।
एकान्त में बैठे गोराराय,
पांव से सर तक पुलक से पूरित
प्रेम-धारा बह जाय ।
१
हिरण्यांगी सखी आयी उसी क्षण,
राई कहे – कहां से हुआ आगमन ?
तब सखियां राधा के दिल को किया शान्त ,
सुनाकर श्याम-बन्धुआ के गुण-गान अनन्त ।