राधिका रूपसी साथ है तुलसी
कहे मधुर कथा
करो इसी क्षण कानन में गमन
नागर-शेखर यथा ।
वक़्त जानके रसिक बनके
जहां हैं नागर-कान
जाना चतुर के पास कहना कपट-भाष
रखना अपना मान ।
तुलसी उल्लसित दिल में हरषित
चल पड़ी राई के कहने पे,
लेकर फूल-हार ताम्बूल उपहार
पहुंची राधाकुण्ड-तीर पे।
देखकर तुलसी नागर हुये उल्लसी
बिठाये जतन से पास,
कहे अपनी कथा दिल की व्यथा
न रखे कोई राज़ ।
‘बताओ प्यारी मेरी राधा गोरी
कब आवेगी मेरे पास ?
मेरा दिल परेशान हो गया हैरान
कब बुझेगी मेरी प्यास ?
ऐ प्यारी चतूरी ना करो तुम चातुरी
मेरे सर की कसम तुझे,
राधा का कुशल और कल्याण-मंगल
कहके शीतल करो मुझे ।
राधा-विनोदिनी दिवस और रजनी
अन्दर खलबली मचाये,
सोते ही सपने में आये वह नयनों में
रैन में चैन न आये ।’