पकड़कर मां का कर बोले प्यारे दामोदर,
‘’शुभ काम में ना करो दुख,
हमारे कुल का धर्म ‘’गोचारण’’ हमारा कर्म,
करने से मिलेगा सुख ।
सच बात कहूं तुझसे मैया तू जान दिलसे
अब असुर नहीं हैं वन में,
घर जैसा लगे वन चराते हैं धेनूगण
डर कैसा जब दाउ-भैया साथ में ?
गोवर्धन है रंग-बिरंग वहां खेलते हैं गौ-संग
धनिष्ठा के हाथों भेजना खबर ।
तुम्हारा भोजन-संवाद उसे पाने के बाद
ही मैं खाऊंगा होके बेफिकर ।
शेखर की बात मान मैया अब और बहस न कर मैया
अरे, कोई मां को ले जाओ घर !’’
चतुर-सुजान जो होवे वह किसे न समझा ले ?
चले अपना काम साधकर ।