प्यारी कुन्दलता विशाखा ललिता
ले आईं राई को घर,
राधिका रतन करके जतन
सौंपा जटीला के कर ।
विविध भूषण विचित्र वसन
देखकर बहू के अंग,
करके अपार लाड़ प्यार
बिठाया अपने संग ।
“सुन कुन्दलते, ये सच्ची बातें,
जसोदा को मेरी बेटी ही जान,
यह घर वह घर दोनों तिहार
आज से मैंने लिया ठान ।
मेरे न देखें नयान न सुने पायें कान
बैठने से उठ न पाऊं,
शरीर अचल हमेशा विकल
न जाने कब मर जाऊं ।
देवता के आशिष से बहू रहे सुख से,
मेरे नन्हें से बेटे को लेकर[3],
अच्छे से गोधन का करे पालन
सौ पुत्रों की माता बनकर ।”
सुनकर उत्तर चतुर शेखर
बोले विनय-बानी,
“ तुम्हारे वचन चरित्र और चलन
सदा गाती हैं रानी[4] ।”
अब बहू को समझाकर भेजो पूजने दिनकर[5]
सजाके उसे सुन्दर,
करो थोड़ा आराम होवे दूर थकान
फिर चलेंगे मन्दिर ।”
[3] सभी माताओं की तरह जटीला भी अपने बेटे को नन्हा ही समझती है ।
[4] नन्द रानी हमेशा तुम्हारी प्रशंसा करती है ।
[5] सूर्यदेव