Poem by my loving Vijay dada –
मोहन-लाल शोभे , लाल रंग में
और साथ रही, वृषभानु की लाली ।
दोनों ने धारण कियो , लाल वस्त्र
मद भरे नयन , दोनों के अनुपम।
अधर लाल पान चाबी , मारी पिचकारी
कर की हथेली बनी लाल, मेहदी से
चरण लाल , भक्तन जीवन आधार
मोतिन माला , लाल रही कन्ठो पर।
भाल सोभे लाल , माधव तिलक से
रही सुंदर लाल बिंदी , दुलारी के भाल।
लाल कूंडल , हलन करे करण पर
कर लाल कंगन , से अति शोभित
और कमर सजी , लाल कमर-बन्ध से
लाल बांधे शिर पर , लाल पाग और
लाली शिर लाल , चन्दिका मोतिन की ।
राधा कूंड्ड , रंग देवी सखी को कुंज ,
जहाँ सब लाल-लाल है –
वृक्ष , लता पता , खग मृग आदि
सखियाँ भी , लाल वस्त्र आभूषण शोभित
प्रेममयी सेवा के , रंग में हो गए सब मस्त ।
लाल और लाली के , हृदय अनुराग से छलके
टेडी नजरियाँ करे ,कृपा दान भक्ति का
विजयकृष्ण बिचारो , वंचित इन कृपा से |
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