गौरचन्द्र – भोजन तथा वेश-भूषा

करके पिछ्ली यादें  , प्रभु विभोर हुये,

पार्षदों को लेकर प्रभु भाव में डूब गये ।

राधारानी बाल-भोग-प्रसाद पाती हैं

 

रसोई से मलिना            हुयी हसीना

        बैठीं बाहर आकर,

पसीने से टलमल            वह अंग झलमल

                जैसे हों दिनकर ।