श्री श्री राधा-कृष्ण के रास-विलास

श्याम के अंग अनंग तरंगिम[1] त्रिभंगिम धारी,

भाव विभंगिम[2] रंगिम[3] दृष्टि बंकिम नयन निहारी[4]


सखी री ! रसवती के साथ नाचे रसिकवर राय,

अपरूप रास-विलास कला में कोटी काम मुरछाय[5]

श्री गौरचन्द्र – रासविहार के आवेश में –

 

 

सहचरों के साथ गोरा नटराज,

 

झूम झूमकर नाचे कीर्तन समाज ।

 

 

 

सुरधनी के तट अति मनोहर,

 

गौरचन्द्र धरे गदाधर-कर ।

 

 

 

कितने ही यंत्र के मिलन कर,

 

बजाये मृदंग करताल धर ।

 

 

 

  सुमधुर राग रसाल गावे,

 

“वाह ! वाह !” कह Read more >

श्री श्री राधा-कृष्ण का अभिसार और मिलन

 


सखियों के आगमन         देखकर हर्षित मन

                धनी उठ बैठे शेज पर,

नयन मेलकर        मूंह धोकर

                सजे दिल भरकर ।

 

धनी हैं गुणवती             सभी कलाओं मे कलावती,

                जानकर श्याम का उद्देश,

मदन-मोहन के मन         को हरने के कारण

                धरतीं हैं निरुपम Read more >

श्री श्री गौरचन्द्र का अभिसार-आवेश

कच्चे कंचन सी कान्ति कलेवर की,

                चितवन कुटील सुधीर,

बहुत पतली चीर से ढंके हैं तन

                जावत सुरधुनी तीर ।

श्री श्री राधा-कृष्ण की राज-सभा, भोजन और विश्राम –

 

अटरिया पे उठ कर देखे कानू,

मन्दिर के छत पर धनी, पुलकित तनू ।

 

दूर से दोनों एक दूजे को देखें,

अवश हुये तन, कैसे जिया रखें ?

 

श्री गौरचन्द्र के भोजन और विश्राम –

 

सोने का वर्ण हैं गौरचन्दा,

जगत की आंखों का फन्दा ।

 

उसपे कितने भाव-प्रकाश,

कौन समझे ये रस-विलास ?

 

कैसे कहूं पहुं[1] के चरित ?

उनकी तो आंसू-भरी पिरीत  ।

 

पुलकित हैं प्रेम-अंकुर,

हर अंग सुख से भरपूर ।Read more >

गोधूलि धुसर श्याम कलेवर

सखाओं के साथ आये नन्द-दुलाल,

गोधुलि धुसर                श्याम कलेवर

जानू-लम्बित वनमाल ।

 

बार बार शृंग-वेनू रव सुनकर दौड़ आये ब्रजवासी,

आरती उतारें वधूगण, देखें मधुर मुस्कान-हंसी ।

 

पीताम्बर धर                मुख निन्दे विधूवर

नव-मंजरी अवतंस

अंगद-केयूर                  चुड़ा मयूर,

बजाये मोहन-वंस[2]Read more >

उत्तर-गोष्ठ की लीला –

राधा सरसी         होकर हरषी

                भवन में बैठीं बाला,

सुरस व्यंजन         किया रन्धन,

                भरईं[1] स्वर्ण-थाला ।

 

ढंककर वसन से             रखकर जतन से

                करने गयी स्नान,

दासियों के संग              हुआ रस-रंग

                करते हुये स्नान ।

 

अन्दर जाकर        बहुत जतन कर

                पहिना Read more >

उत्तर गोष्ठ की आवेश में महाप्रभु

 

जय शची-नन्दन भुवन आनन्द !

नवद्वीप में उछले नव-रस-कन्द !

 

गो-क्षूर धूल देखकर, सुन वेणू-निसान,

“अपरूप श्याम मधुर-मधुर-अधर मृदु मुरली-गान”

 

ऐसा कहकर भाव-विवश गौर, कहे गदगद बात,

“श्याम सुनागर वन से आवत सब सहचरों के साथ ।

 

मेरे तन मन Read more >

श्री श्री राधा-कृष्ण – शुक-शारी पाठ और पांसे का खेल –

राधा-माधव उठे शयन से अलस-अवश शरीर,

वनेश्श्वरी उस क्षण करके जतन लायी शारी-शुक कीर[1]

 

शुक-शारी को देखकर दोनों को हुआ आनन्द,

राई के इशारे पे वृन्दा पढ़ावे गीत-पद्य सुछन्द[2]

 

कानू के रूप लक्षण         शुक करे वर्णन,Read more >