श्याम के अंग अनंग तरंगिम[1] त्रिभंगिम धारी,
भाव विभंगिम[2] रंगिम[3] दृष्टि बंकिम नयन निहारी[4] ।
सखी री ! रसवती के साथ नाचे रसिकवर राय,
अपरूप रास-विलास कला में कोटी काम मुरछाय[5] ।
सहचरों के साथ गोरा नटराज,
झूम झूमकर नाचे कीर्तन समाज ।
सुरधनी के तट अति मनोहर,
गौरचन्द्र धरे गदाधर-कर ।
कितने ही यंत्र के मिलन कर,
बजाये मृदंग करताल धर ।
सुमधुर राग रसाल गावे,
“वाह ! वाह !” कह … Read more >
सखियों के आगमन देखकर हर्षित मन
धनी उठ बैठे शेज पर,
नयन मेलकर मूंह धोकर
सजे दिल भरकर ।
धनी हैं गुणवती सभी कलाओं मे कलावती,
जानकर श्याम का उद्देश,
मदन-मोहन के मन को हरने के कारण
धरतीं हैं निरुपम … Read more >
कच्चे कंचन सी कान्ति कलेवर की,
चितवन कुटील सुधीर,
बहुत पतली चीर से ढंके हैं तन
जावत सुरधुनी तीर ।
अटरिया पे उठ कर देखे कानू,
मन्दिर के छत पर धनी, पुलकित तनू ।
दूर से दोनों एक दूजे को देखें,
अवश हुये तन, कैसे जिया रखें ?
सोने का वर्ण हैं गौरचन्दा,
जगत की आंखों का फन्दा ।
उसपे कितने भाव-प्रकाश,
कौन समझे ये रस-विलास ?
कैसे कहूं पहुं[1] के चरित ?
उनकी तो आंसू-भरी पिरीत ।
पुलकित हैं प्रेम-अंकुर,
हर अंग सुख से भरपूर ।… Read more >
सखाओं के साथ आये नन्द-दुलाल,
गोधुलि धुसर श्याम कलेवर
जानू-लम्बित वनमाल ।
बार बार शृंग-वेनू रव सुनकर दौड़ आये ब्रजवासी,
आरती उतारें वधूगण, देखें मधुर मुस्कान-हंसी ।
पीताम्बर धर मुख निन्दे विधूवर
नव-मंजरी अवतंस
अंगद-केयूर चुड़ा मयूर,
बजाये मोहन-वंस[2]… Read more >
राधा सरसी होकर हरषी
भवन में बैठीं बाला,
सुरस व्यंजन किया रन्धन,
भरईं[1] स्वर्ण-थाला ।
ढंककर वसन से रखकर जतन से
करने गयी स्नान,
दासियों के संग हुआ रस-रंग
करते हुये स्नान ।
अन्दर जाकर बहुत जतन कर
पहिना … Read more >
जय शची-नन्दन भुवन आनन्द !
नवद्वीप में उछले नव-रस-कन्द !
गो-क्षूर धूल देखकर, सुन वेणू-निसान,
“अपरूप श्याम मधुर-मधुर-अधर मृदु मुरली-गान”
ऐसा कहकर भाव-विवश गौर, कहे गदगद बात,
“श्याम सुनागर वन से आवत सब सहचरों के साथ ।
मेरे तन मन … Read more >
राधा-माधव उठे शयन से अलस-अवश शरीर,
वनेश्श्वरी उस क्षण करके जतन लायी शारी-शुक कीर[1] ।
शुक-शारी को देखकर दोनों को हुआ आनन्द,
राई के इशारे पे वृन्दा पढ़ावे गीत-पद्य सुछन्द[2] ।
कानू के रूप लक्षण शुक करे वर्णन,… Read more >