नवद्वीप – २

श्रीवास प्रांगन में मेरे गौरकिशोर प्रेम में मगन होकर नाचेंगे, और राधा भाव में विभोर हो जाएँगे । दोनों प्रभु – नित्यानंद और अद्वैत – उनके दोनों तरफ नाच रहे होंगे ।

नवद्वीप – १


नवद्वीप

श्रीवास प्रांगण मध्यस्थः स्वापि भक्त गणैः सः

कदा पश्यामि गौरांग तव क्रीडित माधुरी |

निशांते गौर चंद्रस्य शयनाञ्च निजालये

प्रातः काल कृतोत्थान स्नानं तत्भोजनादिकम ।।

योगपीठ

 

पीताम्बर घनश्याम द्विभुज सुन्दर,

कण्ठ में वनमाला, गुंजे मधुकर ।

शची माता गोराचांद को सजा रही है

 

 

शची मां कितने ही भुषणों से

सजा रही हैं गोराचांद को प्यार से ।

 

गौरचन्द्र – भोजन तथा वेश-भूषा

करके पिछ्ली यादें  , प्रभु विभोर हुये,

पार्षदों को लेकर प्रभु भाव में डूब गये ।

राधारानी बाल-भोग-प्रसाद पाती हैं

 

रसोई से मलिना            हुयी हसीना

        बैठीं बाहर आकर,

पसीने से टलमल            वह अंग झलमल

                जैसे हों दिनकर ।

कन्हैया जी सखाओं के साथ भोजन कर रहे हैं –

 

शीतल जल से           निर्मल सुगंध से

        भरकर सोने के गिलास,

बड़े सावधानी से            और प्यार से

        रखा हर आसन के पास ।

राधारानी के बनाये हुये पकवान –

 

 

भोर हुआ जैसे               दास-दासियों से

        मैया कराये काम-काज,

जिसका जो काम,           सो करे अनुपाम,

होकर तत्पर आज ।