मदनमोहन का स्वामिनीजु पर कैसा प्रभाव होता है ?

राधारानी बोल रहीं हैं –

 

सौन्दर्य नहीं, अमृत-सिन्धु,               उस तरंग का  एक बिन्दु,

                           नाज़नीनों के चित्त को डूबाये।

कृष्ण की ये नर्म-कथाएं                    हैं सुधामय गाथाएं

                तरुणियों के कानों को सुहायें ।

उतावले श्याम

राधिका रूपसी             साथ है तुलसी

                कहे मधुर कथा

करो इसी क्षण               कानन में गमन

                नागर-शेखर यथा ।

इम्तहान हो गयी इन्तज़ार की

माधव बैठे  कुंड के तीर

सोच सोचकर सुन्दरी              बाट देखें श्री हरि

                बेचैन दिल न रहे स्थिर

राधाकुण्ड की शोभा न्यारी

 

अपरूप कुंड की शोभा             राई-कानू मनोलोभा

                चारों तरफ शोभे चार घाट

विविध रत्नों की छटा              अपूर्व सीढ़ियों की घटा

                स्फटिक मणियों से बना घाट ।

मैया ऐसो तमन्ना का करे ?

कानू को भेजकर वन               है यशोदा का विषाद मन

                राधिका को लिया आग़ोश में,

दुख में हुई बावली                 न निकले बोली

                वसन भीगा आंसूवन में ।

नीलमणि चले वन, करने को गौ-चारण

जब वन जाते हैं कान्हा           

और लगाते हैं वेणू का निशाना,

 

कान्हा को विदा करते हुये

मैया अंगपे हाथ फेरे और मुंह को पोंछे,

थन-खीर और नयन-नीर से धरती  को सींचे ।

मां यशोदा ईश्वरी को लाड़ लड़ाती है

 

 

ओ लाली मेरी                प्यारी दुलारी

        कहकर जसोदा सजाये,

चमकीले लट                 काले घन-घट,

        संवारकर वेणी बनाये ।

वृन्दावन – ५

 

वृन्दा के इशारे पर वानर और वानरी आकर कहेंगे, “ हे सुन्दरी, सुनो सुनो , वह बूढ़ी अम्मा आ रही है ।” यह सुनकर धनी  गिरिधारी के हाथ पकडकर, कुंज से जल्दी बाहर आ जाएगी । अपने मुँह से Read more >

वृन्दावन – ३, ४

वृन्दा के इशारे पर सभी पक्षी शोर करेंगे । हे सुवदनी, शुक और शारी के वचन सुनकर तुम जाग कर बैठ जाओगी । मेरे धनी, तुम पीताम्बर से अपने अंग को ढंककर, नागर के पास जाकर बैठ जाओगी । Read more >