” कानन में श्याम ही श्याम “

दोनों के चेहरे देखकर दोनों को हुआ धन्द[1],

राई कहे तमाल, तो माधव कहे चन्द ।

राधारानी राधा-वल्लभ को न पहचाने

कहे राई, ‘’यह रूप         है बड़ा अपरूप,

                साक्षात में होवे चमत्कार,

तरुण तमाल है क्या ?             नवमेघ है क्या ?

                क्या यह है इन्द्रनीलमणि ?

राई-कानू राधाकुण्ड के तट पर

(कभी तो राधारानी पहले ही पहुंच जाती हैं और श्यामसुन्दर उनको पहचान नहीं पाते) –

 

वृन्दा कहे ‘कान,            करो अवधान,

                नागरी है सरसी कूल,

करने देवता-पूजन,          लाई हूं करके जतन,

                वह देखो बकुल-मूल’ !