बायीं तरफ पुष्प-बाण लेकर कान,
और अवतंस में सुन्दर पुष्प-बाण ।
बायीं तरफ पुष्प-बाण लेकर कान,
और अवतंस में सुन्दर पुष्प-बाण ।
कानन देवी ने किया इशारा समय जानकर,
बसन्त से कहा, ‘’सेवा करो होकर तत्पर’’ ।
देखो देखो गौरचन्द्र, करे कितने रंग,
विविध विनोद कला और प्रेम-तरंग ।
दोनों जन विलासे कुंज के माझ,
रसवती गोरी और रसिक-वर-राज ।
परस्पर दर्शन से दोनों हुये भाव-विभोर,
निरन्तर दोनों के नयन से बहे आनन्द-लोर ।
कानू तनू का स्पर्श पाकर सुधामुखी,
प्रसन्न प्रफुल्लित तन, हुई महासुखी ।
तोड़ने कुसुम चली जब राई,
नागर बाहें पसारकर जाई ।
दोनों के चेहरे देखकर दोनों को हुआ धन्द[1],
राई कहे तमाल, तो माधव कहे चन्द ।
कहे राई, ‘’यह रूप है बड़ा अपरूप,
साक्षात में होवे चमत्कार,
तरुण तमाल है क्या ? नवमेघ है क्या ?
क्या यह है इन्द्रनीलमणि ?
(कभी तो राधारानी पहले ही पहुंच जाती हैं और श्यामसुन्दर उनको पहचान नहीं पाते) –
वृन्दा कहे ‘कान, करो अवधान,
नागरी है सरसी कूल,
करने देवता-पूजन, लाई हूं करके जतन,
वह देखो बकुल-मूल’ !