Śhrī-Guru-Geeta – Part 3

|| अथ तृतीयोऽध्यायः ||

अथ काम्यजपस्थानं कथयामि वरानने |

सागरान्ते सरित्तीरे तीर्थे हरिहरालये ||

शक्तिदेवालये गोष्ठे सर्वदेवालये शुभे |

वटस्य धात्र्या मूले व मठे वृन्दावने तथा ||

पवित्रे निर्मले देशे नित्यानुष्ठानोऽपि वा |

निर्वेदनेन मौनेन जपमेतत् समारभेत् ||

Chapter -3

Read more >

Śhrī-Guru-Geeta – Part 2

|| अथ द्वितीयोऽध्यायः ||

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं

द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् |

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतम्

भावतीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि ||

Chapter -2


I prostrate myself before that Guru, the Bliss of Brahman, the bestower of Supreme Happiness, who Read more >

राई का रूप-अभिसार

सखी-वचन सुनकर         चन्द्रमुखी लजाकर

                चेहरे को आंचल में है छुपाती,

कानू के प्यार                को करके याद,

                राह में फिर से है चलती ।

असली मोह तो स्वामिनीजु को ही होता है – भक्तों को नहीं

 

सखी-संग चलीं राह पर राई बिनोदिनी,

विषाद से व्याकूल दिल, कहे कुछ वाणी ।

श्याम, तुझसे मिलने का बहाना है

 

 

सुनकर तुलसी के वचन            सखियां हुयीं प्रसन्न

                चली करने  सुर्य-पूजन,

विधि के अगोचर            ऐसे उपहार लेकर

                पूज-तैयारी में हुयीं मगन ।

कन्हैयाजी ने तुलसी के हाथों भेजा गुञ्जा-मालिका और चम्पक फूल

तुलसी वहां आकर          बताये सब खबर

                सुनकर सुवदनी हरषाये,

राई कण्ठ में ललिता                पहिनाये गुंजा-मालिका

                कानों में चम्पक दिये ।

मदनमोहन का स्वामिनीजु पर कैसा प्रभाव होता है ?

राधारानी बोल रहीं हैं –

 

सौन्दर्य नहीं, अमृत-सिन्धु,               उस तरंग का  एक बिन्दु,

                           नाज़नीनों के चित्त को डूबाये।

कृष्ण की ये नर्म-कथाएं                    हैं सुधामय गाथाएं

                तरुणियों के कानों को सुहायें ।

उतावले श्याम

राधिका रूपसी             साथ है तुलसी

                कहे मधुर कथा

करो इसी क्षण               कानन में गमन

                नागर-शेखर यथा ।