श्री बलराम और श्रीकृष्ण गोठ में जा रहे हैं –

 

 

( मां यशोदा और ब्रजवासियों का दुख) –

 

दिल में जले  अंगारा        आंखों से बहे धारा

                दुख से फट जाए,

जो है बिल्कुल अनजान            वह चला है वन

                मैया कैसे सह पाये ?

गोरा चले गो चराने

शचीनन्दन शचीदुलाल गोठ चले पगे पगे[1],

रोहिणी कुंवर निताइचांद आगे आगे भागे ।

श्री गौरचन्द्र गोठ में जाने के भाव में



शचीनन्दन गोरा करे कितना प्यार

‘’धवली’’ ‘’शांवली’’ बोल पुकारे बार बार ।

नवद्वीप – ३

मेरे तो तीन प्रभु हैं – निताईचांद, गौरसुंदर और सीतानाथ । मेरी प्रार्थना है कि वे मुझपर कृपा करके अपनी लीला माधुरी का दर्शन कराएं । और सिर्फ इतना हि नहीं, मुझे हमेशा अपने संग रखें ।

योगपीठ

 

पीताम्बर घनश्याम द्विभुज सुन्दर,

कण्ठ में वनमाला, गुंजे मधुकर ।

शची माता गोराचांद को सजा रही है

 

 

शची मां कितने ही भुषणों से

सजा रही हैं गोराचांद को प्यार से ।

 

गौरचन्द्र – भोजन तथा वेश-भूषा

करके पिछ्ली यादें  , प्रभु विभोर हुये,

पार्षदों को लेकर प्रभु भाव में डूब गये ।

कन्हैया जी सखाओं के साथ भोजन कर रहे हैं –

 

शीतल जल से           निर्मल सुगंध से

        भरकर सोने के गिलास,

बड़े सावधानी से            और प्यार से

        रखा हर आसन के पास ।