शची माता गोराचांद को सजा रही है

 

 

शची मां कितने ही भुषणों से

सजा रही हैं गोराचांद को प्यार से ।

 

गौरचन्द्र – भोजन तथा वेश-भूषा

करके पिछ्ली यादें  , प्रभु विभोर हुये,

पार्षदों को लेकर प्रभु भाव में डूब गये ।

प्रातः लीला – गौरचन्द्र के रसालस, राधारानी के रसोद्गार

गौरचन्द्र – रसालस –

सबेरा होते ही,      शेज[1] त्याजहिं[2],

उठे गौर-विधु[3],

विगलित वेश,       अस्त-व्यस्त केश,

जैसे कोई नयी कुल-वधू[4]

देखें भकतगण       मेरे प्रियजन,

इसलिये उठ बैठे,

डाल रहे मधु,        कहे मृदु-मृदु,

रजनी Read more >

Gouranga advents !

“nidhubone duhun jone, choudike sakhigone, shutiyâchhe rosero âloshe,

nishi sheshe bidhumukhi, uthilen swapano dekhi, kândi kândi kohe bodhu-pâshe.

utho utho prânonâth, ki dekhilâm akasmât, ek juba goura  boron,

kibâ târ roopo thâm, jini koto koti kâm, rasarâj rosero sadan.

ashru … Read more >