दोनों के चेहरे देखकर दोनों को हुआ धन्द[1],
राई कहे तमाल, तो माधव कहे चन्द ।
दोनों के चेहरे देखकर दोनों को हुआ धन्द[1],
राई कहे तमाल, तो माधव कहे चन्द ।
(कभी तो राधारानी पहले ही पहुंच जाती हैं और श्यामसुन्दर उनको पहचान नहीं पाते) –
वृन्दा कहे ‘कान, करो अवधान,
नागरी है सरसी कूल,
करने देवता-पूजन, लाई हूं करके जतन,
वह देखो बकुल-मूल’ !
तुलसी वहां आकर बताये सब खबर
सुनकर सुवदनी हरषाये,
राई कण्ठ में ललिता पहिनाये गुंजा-मालिका
कानों में चम्पक दिये ।
राधिका रूपसी साथ है तुलसी
कहे मधुर कथा
करो इसी क्षण कानन में गमन
नागर-शेखर यथा ।
माधव बैठे कुंड के तीर
सोच सोचकर सुन्दरी बाट देखें श्री हरि
बेचैन दिल न रहे स्थिर
अपरूप कुंड की शोभा राई-कानू मनोलोभा
चारों तरफ शोभे चार घाट
विविध रत्नों की छटा अपूर्व सीढ़ियों की घटा
स्फटिक मणियों से बना घाट ।
तप्त हेम जैसे गोरा उसपे हास सुमधुरा
जग जन नयन-आनन्दा
प्रेम-स्वरूप मूरत अपरूप
चेहरा पूनो का चन्दा ।
करो तैयारियां सभी सखियां
होकर तुम तत्पर,
सावधान बनके सुर्यपूजा करके,
जल्दी लौटना घर ।
प्यारी कुन्दलता विशाखा ललिता
ले आईं राई को घर,
राधिका रतन करके जतन
सौंपा जटीला के कर ।
आज वन में आनन्द रसिया
खेल-मस्ती में मस्त होकर राखाल झूमे विभोर होकर
और दूर चलीं गयीं गैया ।