An appeal From the Author

Sri Sri Bishnupriyā-Gourāngou Jayatah



ātma shodhibār tore duhsāhas koinu,

leelā-sindhur ek bindu sparshite nārinu.

(Adwaita Prakāsh, 22nd Chapter)

 

I was so impudent as to seek self-realization; however I could not touch even one drop from the ocean of the Read more >

शय्या-सेवा की प्रार्थना

 

अटरिया पर सुन्दर बगीचा है । उसके बीचोबीच मैं आसन बिछाऊँगी । तुम सखियों के साथ खूशी से उसपर बैठोगी । कब वह दिन आएगा जब तुम्हारे मुख में ताम्बूल अर्पण करूँगी और तुम्हारे चरणों को वक्ष में धरकर संवाहन Read more >

श्री श्री राधा-कृष्ण का अभिसार और मिलन

 


सखियों के आगमन         देखकर हर्षित मन

                धनी उठ बैठे शेज पर,

नयन मेलकर        मूंह धोकर

                सजे दिल भरकर ।

 

धनी हैं गुणवती             सभी कलाओं मे कलावती,

                जानकर श्याम का उद्देश,

मदन-मोहन के मन         को हरने के कारण

                धरतीं हैं निरुपम Read more >

श्री श्री गौरचन्द्र का अभिसार-आवेश

कच्चे कंचन सी कान्ति कलेवर की,

                चितवन कुटील सुधीर,

बहुत पतली चीर से ढंके हैं तन

                जावत सुरधुनी तीर ।

श्री श्री राधा-कृष्ण की राज-सभा, भोजन और विश्राम –

 

अटरिया पे उठ कर देखे कानू,

मन्दिर के छत पर धनी, पुलकित तनू ।

 

दूर से दोनों एक दूजे को देखें,

अवश हुये तन, कैसे जिया रखें ?

 

गोधूलि धुसर श्याम कलेवर

सखाओं के साथ आये नन्द-दुलाल,

गोधुलि धुसर                श्याम कलेवर

जानू-लम्बित वनमाल ।

 

बार बार शृंग-वेनू रव सुनकर दौड़ आये ब्रजवासी,

आरती उतारें वधूगण, देखें मधुर मुस्कान-हंसी ।

 

पीताम्बर धर                मुख निन्दे विधूवर

नव-मंजरी अवतंस

अंगद-केयूर                  चुड़ा मयूर,

बजाये मोहन-वंस[2]Read more >

उत्तर गोष्ठ की आवेश में महाप्रभु

 

जय शची-नन्दन भुवन आनन्द !

नवद्वीप में उछले नव-रस-कन्द !

 

गो-क्षूर धूल देखकर, सुन वेणू-निसान,

“अपरूप श्याम मधुर-मधुर-अधर मृदु मुरली-गान”

 

ऐसा कहकर भाव-विवश गौर, कहे गदगद बात,

“श्याम सुनागर वन से आवत सब सहचरों के साथ ।

 

मेरे तन मन Read more >

श्री श्री राधा-कृष्ण – शुक-शारी पाठ और पांसे का खेल –

राधा-माधव उठे शयन से अलस-अवश शरीर,

वनेश्श्वरी उस क्षण करके जतन लायी शारी-शुक कीर[1]

 

शुक-शारी को देखकर दोनों को हुआ आनन्द,

राई के इशारे पे वृन्दा पढ़ावे गीत-पद्य सुछन्द[2]

 

कानू के रूप लक्षण         शुक करे वर्णन,Read more >