मेरी कसम खाओ गौओं के आगे न जाओ
लाल नीलमणि, लूं तेरी बलई,
पास में चराना धेनू और बजाना मोहन-वेणू
ताकि घर बैठे मुझे दे सुनाई ।
मेरी कसम खाओ गौओं के आगे न जाओ
लाल नीलमणि, लूं तेरी बलई,
पास में चराना धेनू और बजाना मोहन-वेणू
ताकि घर बैठे मुझे दे सुनाई ।
मैया अंगपे हाथ फेरे और मुंह को पोंछे,
थन-खीर और नयन-नीर से धरती को सींचे ।
पकड़कर मां का कर बोले प्यारे दामोदर,
‘’शुभ काम में ना करो दुख,
हमारे कुल का धर्म ‘’गोचारण’’ हमारा कर्म,
करने से मिलेगा सुख ।
( मां यशोदा और ब्रजवासियों का दुख) –
दिल में जले अंगारा आंखों से बहे धारा
दुख से फट जाए,
जो है बिल्कुल अनजान वह चला है वन
मैया कैसे सह पाये ?
शचीनन्दन शचीदुलाल गोठ चले पगे पगे[1],
रोहिणी कुंवर निताइचांद आगे आगे भागे ।
शचीनन्दन गोरा करे कितना प्यार
‘’धवली’’ ‘’शांवली’’ बोल पुकारे बार बार ।
सुनकर संकेत-वेणु जो बजाया कानु
सुमुखी एक कमरे में किया प्रवेश,
ओ लाली मेरी प्यारी दुलारी
कहकर जसोदा सजाये,
चमकीले लट काले घन-घट,
संवारकर वेणी बनाये ।
योगपीठाम्बुज से उतरकर गोरा,
ब्रज के स्मरण में हो गये भोरा ।
५
वृन्दा के इशारे पर वानर और वानरी आकर कहेंगे, “ हे सुन्दरी, सुनो सुनो , वह बूढ़ी अम्मा आ रही है ।” यह सुनकर धनी गिरिधारी के हाथ पकडकर, कुंज से जल्दी बाहर आ जाएगी । अपने मुँह से … Read more >