कच्चे कंचन सी कान्ति कलेवर की,
चितवन कुटील सुधीर,
बहुत पतली चीर से ढंके हैं तन
जावत सुरधुनी तीर ।
कच्चे कंचन सी कान्ति कलेवर की,
चितवन कुटील सुधीर,
बहुत पतली चीर से ढंके हैं तन
जावत सुरधुनी तीर ।
राधा सरसी होकर हरषी
भवन में बैठीं बाला,
सुरस व्यंजन किया रन्धन,
भरईं[1] स्वर्ण-थाला ।
ढंककर वसन से रखकर जतन से
करने गयी स्नान,
दासियों के संग हुआ रस-रंग
करते हुये स्नान ।
अन्दर जाकर बहुत जतन कर
पहिना … Read more >
सहचर संग गौरकिशोर,
मधुपान-भाव-रस में हुये विभोर ।
क्या कहना चाहे और क्या बताये,
यह तो कोई समझ ही ना पाये ।
प्रभु के रूप में कुछ बदलाव आये,
देखकर भकतगण विभोर हो जायें ।
डोल रहे अलसित अरुण नयन,… Read more >
सखी-संग चलीं राह पर राई बिनोदिनी,
विषाद से व्याकूल दिल, कहे कुछ वाणी ।
सुनकर तुलसी के वचन सखियां हुयीं प्रसन्न
चली करने सुर्य-पूजन,
विधि के अगोचर ऐसे उपहार लेकर
पूज-तैयारी में हुयीं मगन ।
तुलसी वहां आकर बताये सब खबर
सुनकर सुवदनी हरषाये,
राई कण्ठ में ललिता पहिनाये गुंजा-मालिका
कानों में चम्पक दिये ।
राधिका रूपसी साथ है तुलसी
कहे मधुर कथा
करो इसी क्षण कानन में गमन
नागर-शेखर यथा ।
माधव बैठे कुंड के तीर
सोच सोचकर सुन्दरी बाट देखें श्री हरि
बेचैन दिल न रहे स्थिर
अपरूप कुंड की शोभा राई-कानू मनोलोभा
चारों तरफ शोभे चार घाट
विविध रत्नों की छटा अपूर्व सीढ़ियों की घटा
स्फटिक मणियों से बना घाट ।
करो तैयारियां सभी सखियां
होकर तुम तत्पर,
सावधान बनके सुर्यपूजा करके,
जल्दी लौटना घर ।