सखी-संग चलीं राह पर राई बिनोदिनी,
विषाद से व्याकूल दिल, कहे कुछ वाणी ।
सखी-संग चलीं राह पर राई बिनोदिनी,
विषाद से व्याकूल दिल, कहे कुछ वाणी ।
सुनकर तुलसी के वचन सखियां हुयीं प्रसन्न
चली करने सुर्य-पूजन,
विधि के अगोचर ऐसे उपहार लेकर
पूज-तैयारी में हुयीं मगन ।
तुलसी वहां आकर बताये सब खबर
सुनकर सुवदनी हरषाये,
राई कण्ठ में ललिता पहिनाये गुंजा-मालिका
कानों में चम्पक दिये ।
सौन्दर्य नहीं, अमृत-सिन्धु, उस तरंग का एक बिन्दु,
नाज़नीनों के चित्त को डूबाये।
कृष्ण की ये नर्म-कथाएं हैं सुधामय गाथाएं
तरुणियों के कानों को सुहायें ।
अपने घर में है राधा रसवती,
कानु के लिये विरहिनी है तड़पती ।
राधिका रूपसी साथ है तुलसी
कहे मधुर कथा
करो इसी क्षण कानन में गमन
नागर-शेखर यथा ।
माधव बैठे कुंड के तीर
सोच सोचकर सुन्दरी बाट देखें श्री हरि
बेचैन दिल न रहे स्थिर
अपरूप कुंड की शोभा राई-कानू मनोलोभा
चारों तरफ शोभे चार घाट
विविध रत्नों की छटा अपूर्व सीढ़ियों की घटा
स्फटिक मणियों से बना घाट ।
सब धेनूगण लेकर गोपगण
सावधानी से चराये,
कान्हा दाऊजी के पास जाकर रखे विनम्र आस
वनशोभा देखन जाये ।
तप्त हेम जैसे गोरा उसपे हास सुमधुरा
जग जन नयन-आनन्दा
प्रेम-स्वरूप मूरत अपरूप
चेहरा पूनो का चन्दा ।