अपरूप कुंड की शोभा राई-कानू मनोलोभा
चारों तरफ शोभे चार घाट
विविध रत्नों की छटा अपूर्व सीढ़ियों की घटा
स्फटिक मणियों से बना घाट ।
अपरूप कुंड की शोभा राई-कानू मनोलोभा
चारों तरफ शोभे चार घाट
विविध रत्नों की छटा अपूर्व सीढ़ियों की घटा
स्फटिक मणियों से बना घाट ।
तप्त हेम जैसे गोरा उसपे हास सुमधुरा
जग जन नयन-आनन्दा
प्रेम-स्वरूप मूरत अपरूप
चेहरा पूनो का चन्दा ।
करो तैयारियां सभी सखियां
होकर तुम तत्पर,
सावधान बनके सुर्यपूजा करके,
जल्दी लौटना घर ।
प्यारी कुन्दलता विशाखा ललिता
ले आईं राई को घर,
राधिका रतन करके जतन
सौंपा जटीला के कर ।
कानू को भेजकर वन है यशोदा का विषाद मन
राधिका को लिया आग़ोश में,
दुख में हुई बावली न निकले बोली
वसन भीगा आंसूवन में ।
खेल समापन कर बहुत ही थककर
सखा बैठे घेरकर,
भोजन सम्भार था साथ अपार
भोजन किये मस्त होकर ।
Radhe Radhe !!
Since a few days, i am carrying on some sweet ‘nonk – jhonk’ with my dear dear Vijay dada.
What is special is that the poetic-bug seems to have bitten him as well, and we are indulging … Read more >
माता को विदा कर चले हरि गोठ की ओर
पुकारे, ‘ सुनो भैया ’!
न जायेंगे मैदान आज चलो चलें गिरिराज
हांककर ले चलो गैया ।
जब वन जाते हैं कान्हा
और लगाते हैं वेणू का निशाना,