भ्रमत गहन वन में जुगल-किशोर,
संग सखीगण आनन्द-विभोर ।
एक सखी कहे, “देखो देखो सखियन,
कैसे एक दूजे को देखें, अपलक अंखियन !’’
पेड़ हैं पुलकित, खुशबू[1] पाकर भ्रमर-गण
उनकी ओर[2] भागे त्यज फूलों का वन ।
दोनों … Read more >
भ्रमत गहन वन में जुगल-किशोर,
संग सखीगण आनन्द-विभोर ।
एक सखी कहे, “देखो देखो सखियन,
कैसे एक दूजे को देखें, अपलक अंखियन !’’
पेड़ हैं पुलकित, खुशबू[1] पाकर भ्रमर-गण
उनकी ओर[2] भागे त्यज फूलों का वन ।
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(कभी तो राधारानी पहले ही पहुंच जाती हैं और श्यामसुन्दर उनको पहचान नहीं पाते) –
वृन्दा कहे ‘कान, करो अवधान,
नागरी है सरसी कूल,
करने देवता-पूजन, लाई हूं करके जतन,
वह देखो बकुल-मूल’ !
सुनकर तुलसी के वचन सखियां हुयीं प्रसन्न
चली करने सुर्य-पूजन,
विधि के अगोचर ऐसे उपहार लेकर
पूज-तैयारी में हुयीं मगन ।
तुलसी वहां आकर बताये सब खबर
सुनकर सुवदनी हरषाये,
राई कण्ठ में ललिता पहिनाये गुंजा-मालिका
कानों में चम्पक दिये ।
सौन्दर्य नहीं, अमृत-सिन्धु, उस तरंग का एक बिन्दु,
नाज़नीनों के चित्त को डूबाये।
कृष्ण की ये नर्म-कथाएं हैं सुधामय गाथाएं
तरुणियों के कानों को सुहायें ।
राधिका रूपसी साथ है तुलसी
कहे मधुर कथा
करो इसी क्षण कानन में गमन
नागर-शेखर यथा ।
माधव बैठे कुंड के तीर
सोच सोचकर सुन्दरी बाट देखें श्री हरि
बेचैन दिल न रहे स्थिर
अपरूप कुंड की शोभा राई-कानू मनोलोभा
चारों तरफ शोभे चार घाट
विविध रत्नों की छटा अपूर्व सीढ़ियों की घटा
स्फटिक मणियों से बना घाट ।
तप्त हेम जैसे गोरा उसपे हास सुमधुरा
जग जन नयन-आनन्दा
प्रेम-स्वरूप मूरत अपरूप
चेहरा पूनो का चन्दा ।
करो तैयारियां सभी सखियां
होकर तुम तत्पर,
सावधान बनके सुर्यपूजा करके,
जल्दी लौटना घर ।