चलो गोवर्धन, होके आनन्द मगन

माता को विदा कर         चले हरि गोठ की ओर

                पुकारे,  ‘ सुनो भैया ’!

न जायेंगे मैदान आज               चलो चलें गिरिराज

                हांककर ले चलो गैया ।

नीलमणि चले वन, करने को गौ-चारण

जब वन जाते हैं कान्हा           

और लगाते हैं वेणू का निशाना,

 

मैया नीलु को चेतावनी दे रही है –

  


मेरी कसम खाओ           गौओं के आगे न जाओ


                लाल नीलमणि, लूं तेरी बलई,


पास में चराना धेनू         और बजाना मोहन-वेणू


                ताकि घर बैठे मुझे दे सुनाई ।

चतुर-सुजान मां को समझाते हैं

पकड़कर मां का कर               बोले प्यारे दामोदर,

                ‘’शुभ काम में ना करो दुख,

हमारे कुल का धर्म                  ‘’गोचारण’’ हमारा कर्म,

                करने से मिलेगा सुख ।

श्री बलराम और श्रीकृष्ण गोठ में जा रहे हैं –

 

 

( मां यशोदा और ब्रजवासियों का दुख) –

 

दिल में जले  अंगारा        आंखों से बहे धारा

                दुख से फट जाए,

जो है बिल्कुल अनजान            वह चला है वन

                मैया कैसे सह पाये ?

श्री गौरचन्द्र गोठ में जाने के भाव में



शचीनन्दन गोरा करे कितना प्यार

‘’धवली’’ ‘’शांवली’’ बोल पुकारे बार बार ।

मां यशोदा ईश्वरी को लाड़ लड़ाती है

 

 

ओ लाली मेरी                प्यारी दुलारी

        कहकर जसोदा सजाये,

चमकीले लट                 काले घन-घट,

        संवारकर वेणी बनाये ।

नवद्वीप – १


नवद्वीप

श्रीवास प्रांगण मध्यस्थः स्वापि भक्त गणैः सः

कदा पश्यामि गौरांग तव क्रीडित माधुरी |

निशांते गौर चंद्रस्य शयनाञ्च निजालये

प्रातः काल कृतोत्थान स्नानं तत्भोजनादिकम ।।

योगपीठ

 

पीताम्बर घनश्याम द्विभुज सुन्दर,

कण्ठ में वनमाला, गुंजे मधुकर ।

शची माता गोराचांद को सजा रही है

 

 

शची मां कितने ही भुषणों से

सजा रही हैं गोराचांद को प्यार से ।