निशान्त-लीला – १

राग भैरवी

सोये हैं गोराचांद विचित्र पलंग पर,

शयन-मन्दिर में शय्या अति मनोहर ।

 

प्रेमालस में अवश हैं नटराज गौर,

कैसे कहूं अंग-शोभा, शब्द नहीं और ।

 

मेघ[1] की बिजली[2] किसीने छानकर,

गोरा-अंग बनाया रस घोलकर Read more >

उत्तर गोष्ठ की आवेश में महाप्रभु

 

जय शची-नन्दन भुवन आनन्द !

नवद्वीप में उछले नव-रस-कन्द !

 

गो-क्षूर धूल देखकर, सुन वेणू-निसान,

“अपरूप श्याम मधुर-मधुर-अधर मृदु मुरली-गान”

 

ऐसा कहकर भाव-विवश गौर, कहे गदगद बात,

“श्याम सुनागर वन से आवत सब सहचरों के साथ ।

 

मेरे तन मन Read more >

श्री श्री राधा-कृष्ण – शुक-शारी पाठ और पांसे का खेल –

राधा-माधव उठे शयन से अलस-अवश शरीर,

वनेश्श्वरी उस क्षण करके जतन लायी शारी-शुक कीर[1]

 

शुक-शारी को देखकर दोनों को हुआ आनन्द,

राई के इशारे पे वृन्दा पढ़ावे गीत-पद्य सुछन्द[2]

 

कानू के रूप लक्षण         शुक करे वर्णन,Read more >

प्रेम-वैचित्ति

 

भ्रमत गहन वन में जुगल-किशोर,

संग सखीगण आनन्द-विभोर ।

 

एक सखी कहे, “देखो देखो सखियन,

कैसे एक दूजे को देखें, अपलक अंखियन !’’

 

पेड़ हैं पुलकित, खुशबू[1] पाकर भ्रमर-गण

उनकी ओर[2] भागे त्यज फूलों का वन ।

 

दोनों Read more >

” कानन में श्याम ही श्याम “

दोनों के चेहरे देखकर दोनों को हुआ धन्द[1],

राई कहे तमाल, तो माधव कहे चन्द ।

राधारानी राधा-वल्लभ को न पहचाने

कहे राई, ‘’यह रूप         है बड़ा अपरूप,

                साक्षात में होवे चमत्कार,

तरुण तमाल है क्या ?             नवमेघ है क्या ?

                क्या यह है इन्द्रनीलमणि ?

कन्हैयाजी ने तुलसी के हाथों भेजा गुञ्जा-मालिका और चम्पक फूल

तुलसी वहां आकर          बताये सब खबर

                सुनकर सुवदनी हरषाये,

राई कण्ठ में ललिता                पहिनाये गुंजा-मालिका

                कानों में चम्पक दिये ।

उतावले श्याम

राधिका रूपसी             साथ है तुलसी

                कहे मधुर कथा

करो इसी क्षण               कानन में गमन

                नागर-शेखर यथा ।

इम्तहान हो गयी इन्तज़ार की

माधव बैठे  कुंड के तीर

सोच सोचकर सुन्दरी              बाट देखें श्री हरि

                बेचैन दिल न रहे स्थिर