Radhe Radhe!
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उत्तर-गोष्ठ की लीला –
राधा सरसी होकर हरषी
भवन में बैठीं बाला,
सुरस व्यंजन किया रन्धन,
भरईं[1] स्वर्ण-थाला ।
ढंककर वसन से रखकर जतन से
करने गयी स्नान,
दासियों के संग हुआ रस-रंग
करते हुये स्नान ।
अन्दर जाकर बहुत जतन कर
पहिना … Read more >
श्री श्री राधा-कृष्ण – शुक-शारी पाठ और पांसे का खेल –
राधा-माधव उठे शयन से अलस-अवश शरीर,
वनेश्श्वरी उस क्षण करके जतन लायी शारी-शुक कीर[1] ।
शुक-शारी को देखकर दोनों को हुआ आनन्द,
राई के इशारे पे वृन्दा पढ़ावे गीत-पद्य सुछन्द[2] ।
कानू के रूप लक्षण शुक करे वर्णन,… Read more >
श्री श्री राधा माधव के भोजन-अवशेष
रतन थाल भरई चीनी केले मलाई
लायीं रसवती राई,
शीतल कुंज तल खुशबू सुपरिमल
बैठे नागर कन्हाई ।
प्रेम-वैचित्ति
भ्रमत गहन वन में जुगल-किशोर,
संग सखीगण आनन्द-विभोर ।
एक सखी कहे, “देखो देखो सखियन,
कैसे एक दूजे को देखें, अपलक अंखियन !’’
पेड़ हैं पुलकित, खुशबू[1] पाकर भ्रमर-गण
उनकी ओर[2] भागे त्यज फूलों का वन ।
दोनों … Read more >
” कानन में श्याम ही श्याम “
दोनों के चेहरे देखकर दोनों को हुआ धन्द[1],
राई कहे तमाल, तो माधव कहे चन्द ।
राई-कानू राधाकुण्ड के तट पर
(कभी तो राधारानी पहले ही पहुंच जाती हैं और श्यामसुन्दर उनको पहचान नहीं पाते) –
वृन्दा कहे ‘कान, करो अवधान,
नागरी है सरसी कूल,
करने देवता-पूजन, लाई हूं करके जतन,
वह देखो बकुल-मूल’ !
असली मोह तो स्वामिनीजु को ही होता है – भक्तों को नहीं
सखी-संग चलीं राह पर राई बिनोदिनी,
विषाद से व्याकूल दिल, कहे कुछ वाणी ।
कन्हैयाजी ने तुलसी के हाथों भेजा गुञ्जा-मालिका और चम्पक फूल
तुलसी वहां आकर बताये सब खबर
सुनकर सुवदनी हरषाये,
राई कण्ठ में ललिता पहिनाये गुंजा-मालिका
कानों में चम्पक दिये ।
मदनमोहन का स्वामिनीजु पर कैसा प्रभाव होता है ?
राधारानी बोल रहीं हैं –
सौन्दर्य नहीं, अमृत-सिन्धु, उस तरंग का एक बिन्दु,
नाज़नीनों के चित्त को डूबाये।
कृष्ण की ये नर्म-कथाएं हैं सुधामय गाथाएं
तरुणियों के कानों को सुहायें ।