Radha aur Mohan saje sundar

Radhe Radhe !

This poem is by Vijay dada.

मोहन राधा
राधा और मोहन सजे  सुंदर
श्याम  रंग मोहन  तो गोरी  भानु दुलारी 
छलिया गोपाल तो भोली राधा
काली अमास पूर्ण चन्द्र  से शोभित
संग शोभित  रही सखिया तारे सम
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प्रेम-वैचित्ति

 

भ्रमत गहन वन में जुगल-किशोर,

संग सखीगण आनन्द-विभोर ।

 

एक सखी कहे, “देखो देखो सखियन,

कैसे एक दूजे को देखें, अपलक अंखियन !’’

 

पेड़ हैं पुलकित, खुशबू[1] पाकर भ्रमर-गण

उनकी ओर[2] भागे त्यज फूलों का वन ।

 

दोनों Read more >

मैया ऐसो तमन्ना का करे ?

कानू को भेजकर वन               है यशोदा का विषाद मन

                राधिका को लिया आग़ोश में,

दुख में हुई बावली                 न निकले बोली

                वसन भीगा आंसूवन में ।

महबूब के संग वन-भोजन सजनी !

खेल समापन कर            बहुत ही थककर

                सखा बैठे घेरकर,

भोजन सम्भार              था साथ अपार

                भोजन किये मस्त होकर ।

चलो गोवर्धन, होके आनन्द मगन

माता को विदा कर         चले हरि गोठ की ओर

                पुकारे,  ‘ सुनो भैया ’!

न जायेंगे मैदान आज               चलो चलें गिरिराज

                हांककर ले चलो गैया ।

मां यशोदा कानू को गोठ-वेश में सजा रहीं हैं –

 

सुनकर संकेत-वेणु                  जो बजाया कानु

                सुमुखी एक कमरे में किया प्रवेश,

मां यशोदा ईश्वरी को लाड़ लड़ाती है

 

 

ओ लाली मेरी                प्यारी दुलारी

        कहकर जसोदा सजाये,

चमकीले लट                 काले घन-घट,

        संवारकर वेणी बनाये ।

वृन्दावन – ५

 

वृन्दा के इशारे पर वानर और वानरी आकर कहेंगे, “ हे सुन्दरी, सुनो सुनो , वह बूढ़ी अम्मा आ रही है ।” यह सुनकर धनी  गिरिधारी के हाथ पकडकर, कुंज से जल्दी बाहर आ जाएगी । अपने मुँह से Read more >

वृन्दावन – ३, ४

वृन्दा के इशारे पर सभी पक्षी शोर करेंगे । हे सुवदनी, शुक और शारी के वचन सुनकर तुम जाग कर बैठ जाओगी । मेरे धनी, तुम पीताम्बर से अपने अंग को ढंककर, नागर के पास जाकर बैठ जाओगी । Read more >