गौरचन्द्र का जल-विहार

 

गोराचांद को जलकेलि याद आया,

पार्षदों के साथ खुद जल में उतर आया ।

 

एक दूसरे के अंग पर जल फेंक कर मारे,

गौरांग गदाधर को जल से मारे ।

 

जल-क्रीड़ा करे गोरा हरषित मन,

कोलाहल कलरव करे सब जन Read more >

श्री गौरचन्द्र का मधुपान के भाव में खो जाना

 

सहचर संग गौरकिशोर,

मधुपान-भाव-रस में हुये विभोर ।

 

क्या कहना चाहे और क्या बताये,

यह तो कोई समझ ही ना पाये ।

 

प्रभु के रूप में कुछ बदलाव आये,

देखकर भकतगण विभोर हो जायें ।

 

डोल रहे अलसित अरुण नयन,Read more >

प्रेम-वैचित्ति

 

भ्रमत गहन वन में जुगल-किशोर,

संग सखीगण आनन्द-विभोर ।

 

एक सखी कहे, “देखो देखो सखियन,

कैसे एक दूजे को देखें, अपलक अंखियन !’’

 

पेड़ हैं पुलकित, खुशबू[1] पाकर भ्रमर-गण

उनकी ओर[2] भागे त्यज फूलों का वन ।

 

दोनों Read more >

मदनमोहन का स्वामिनीजु पर कैसा प्रभाव होता है ?

राधारानी बोल रहीं हैं –

 

सौन्दर्य नहीं, अमृत-सिन्धु,               उस तरंग का  एक बिन्दु,

                           नाज़नीनों के चित्त को डूबाये।

कृष्ण की ये नर्म-कथाएं                    हैं सुधामय गाथाएं

                तरुणियों के कानों को सुहायें ।

चले गोरा सूर्य पूजन को

तप्त हेम जैसे गोरा          उसपे हास सुमधुरा

                जग जन  नयन-आनन्दा

प्रेम-स्वरूप                   मूरत अपरूप

                चेहरा पूनो का चन्दा ।

नीलमणि चले वन, करने को गौ-चारण

जब वन जाते हैं कान्हा           

और लगाते हैं वेणू का निशाना,

 

कान्हा को विदा करते हुये

मैया अंगपे हाथ फेरे और मुंह को पोंछे,

थन-खीर और नयन-नीर से धरती  को सींचे ।

चतुर-सुजान मां को समझाते हैं

पकड़कर मां का कर               बोले प्यारे दामोदर,

                ‘’शुभ काम में ना करो दुख,

हमारे कुल का धर्म                  ‘’गोचारण’’ हमारा कर्म,

                करने से मिलेगा सुख ।