श्री श्री राधा माधव के भोजन-अवशेष

रतन थाल भरई             चीनी केले मलाई

                लायीं  रसवती राई,

शीतल कुंज तल             खुशबू सुपरिमल

                बैठे नागर कन्हाई ।

गौरचन्द्र का जल-विहार

 

गोराचांद को जलकेलि याद आया,

पार्षदों के साथ खुद जल में उतर आया ।

 

एक दूसरे के अंग पर जल फेंक कर मारे,

गौरांग गदाधर को जल से मारे ।

 

जल-क्रीड़ा करे गोरा हरषित मन,

कोलाहल कलरव करे सब जन Read more >

श्री गौरचन्द्र का मधुपान के भाव में खो जाना

 

सहचर संग गौरकिशोर,

मधुपान-भाव-रस में हुये विभोर ।

 

क्या कहना चाहे और क्या बताये,

यह तो कोई समझ ही ना पाये ।

 

प्रभु के रूप में कुछ बदलाव आये,

देखकर भकतगण विभोर हो जायें ।

 

डोल रहे अलसित अरुण नयन,Read more >

प्रेम-वैचित्ति

 

भ्रमत गहन वन में जुगल-किशोर,

संग सखीगण आनन्द-विभोर ।

 

एक सखी कहे, “देखो देखो सखियन,

कैसे एक दूजे को देखें, अपलक अंखियन !’’

 

पेड़ हैं पुलकित, खुशबू[1] पाकर भ्रमर-गण

उनकी ओर[2] भागे त्यज फूलों का वन ।

 

दोनों Read more >

” कानन में श्याम ही श्याम “

दोनों के चेहरे देखकर दोनों को हुआ धन्द[1],

राई कहे तमाल, तो माधव कहे चन्द ।

राई-कानू राधाकुण्ड के तट पर

(कभी तो राधारानी पहले ही पहुंच जाती हैं और श्यामसुन्दर उनको पहचान नहीं पाते) –

 

वृन्दा कहे ‘कान,            करो अवधान,

                नागरी है सरसी कूल,

करने देवता-पूजन,          लाई हूं करके जतन,

                वह देखो बकुल-मूल’ !

असली मोह तो स्वामिनीजु को ही होता है – भक्तों को नहीं

 

सखी-संग चलीं राह पर राई बिनोदिनी,

विषाद से व्याकूल दिल, कहे कुछ वाणी ।

श्याम, तुझसे मिलने का बहाना है

 

 

सुनकर तुलसी के वचन            सखियां हुयीं प्रसन्न

                चली करने  सुर्य-पूजन,

विधि के अगोचर            ऐसे उपहार लेकर

                पूज-तैयारी में हुयीं मगन ।

कन्हैयाजी ने तुलसी के हाथों भेजा गुञ्जा-मालिका और चम्पक फूल

तुलसी वहां आकर          बताये सब खबर

                सुनकर सुवदनी हरषाये,

राई कण्ठ में ललिता                पहिनाये गुंजा-मालिका

                कानों में चम्पक दिये ।

इम्तहान हो गयी इन्तज़ार की

माधव बैठे  कुंड के तीर

सोच सोचकर सुन्दरी              बाट देखें श्री हरि

                बेचैन दिल न रहे स्थिर