नवद्वीप
श्रीवास प्रांगण मध्यस्थः स्वापि भक्त गणैः सः
कदा पश्यामि गौरांग तव क्रीडित माधुरी |
निशांते गौर चंद्रस्य शयनाञ्च निजालये
प्रातः काल कृतोत्थान स्नानं तत्भोजनादिकम ।।
नवद्वीप
श्रीवास प्रांगण मध्यस्थः स्वापि भक्त गणैः सः
कदा पश्यामि गौरांग तव क्रीडित माधुरी |
निशांते गौर चंद्रस्य शयनाञ्च निजालये
प्रातः काल कृतोत्थान स्नानं तत्भोजनादिकम ।।
पीताम्बर घनश्याम द्विभुज सुन्दर,
कण्ठ में वनमाला, गुंजे मधुकर ।
शची मां कितने ही भुषणों से
सजा रही हैं गोराचांद को प्यार से ।
करके पिछ्ली यादें , प्रभु विभोर हुये,
पार्षदों को लेकर प्रभु भाव में डूब गये ।
रसोई से मलिना हुयी हसीना
बैठीं बाहर आकर,
पसीने से टलमल वह अंग झलमल
जैसे हों दिनकर ।
शीतल जल से निर्मल सुगंध से
भरकर सोने के गिलास,
बड़े सावधानी से और प्यार से
रखा हर आसन के पास ।
सुन्दरी राधा सखी संग जाई,
नन्दालय के पथ पर लेकर बधाई ।
Radhe Radhe !
continuing from last episode…………….
Kanchana was much disturbed because she could not get a word with the Lord at all. He did not even glance at her – to edge in a word was sheer impossible ! … Read more >
Mataji has yet again sent her mercy in the following article – she writes –
I would again like to share with you a nectar, which my Guru Maharaj just wrote.
I am sure, you will like it:
Jayatu jayatu jayatu debi
Hamsabâhini mâ go shweta boroni
Beenâ bâdini tumi bhagabati.
Brindâbone Shyâm leelâmrita bâdini
Bânshi rupe Shyâm kore âdhâr Binodini.
Gopi-mon mohini râi mono jwalani,
Brahma rupe mâ go tumi sura rupini.
Bidyâ dâyini mâ go gyân … Read more >